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नई दिल्ली. आज से ठीक 14 साल पहले टीम इंडिया ने अपना पहला और इकलौता टी20 वर्ल्ड कप जीता था. उस जीत के हर नायक से तो आप परिचित हैं. लेकिन पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाने वाले कोच लालचंद राजपूत (Lalchand Rajput) तो शायद बहुत कम लोग ही याद कर पाते हैं. मौजूदा समय में ज़िम्बाब्वे के हेड कोच राजपूत से उस जीत को याद करते हुए हमने एक ख़ास बात-चीत की. राजपूत फिलहाल, लंदन में हैं.
सवाल- आज से 14 साल पहले जीत मिली थी वर्ल्ड कप में. कैसे याद करते हैं उस दिन को आप?
जवाब– जी हां, ऐसा लगता है कि मानो ये कल की ही बात है. किसी भी वर्ल्ड कप का हिस्सा होना ही किसी खिलाड़ी के लिए बहुत बड़ी बात होती है. मैं खुद को बहुत लकी मानता हूं कि इस कामयाबी के लिए क्योंकि काफी कम क्रिकेटर को ये नसीब होता है. मैं पहली बार कोच बना और हमलोगों ने ट्रॉफी जीती जो मेरे जीवन का सबसे बड़ा सफर साबित हुआ.
सवाल- आप लोगों का मुंबई में जैसी अगवानी हुई, ऐसे यादगार स्वागत उम्मीद की थी?
जवाब- मुंबई में क्रिकेटर को प्यार तो हमेशा से मिलता आता रहा है. लेकिन इस तरह का भी भव्य स्वागत होगा वाकई में ऐसी उम्मीद कभी नहीं की थी. इतना सम्मान और लोगों का बेइतंहा प्यार रास्ते में, ये कभी नहीं सोचा था कि एअरपोर्ट से बाहर आकर इतने सारे लोग बारिश के बावजूद रास्ते के बाहर, बॉलकनी में खड़े होकर शाबाशी दे रहे थे.. 8 घंटे लगे हमें वानखेडे स्टेडियम में पहुंचने में और वो भी बिना खाने के! लेकिन, ऐसा तनिक भी महसूस नहीं हुआ. क्योंकि लोग ऐसी चीजें खाने के लिए अपने-अपने घरों से हमें दे रहें थे. कहतें हैं कि मुंबई कभी सोती नहीं है. लेकिन उस दिन मुंबई जगी थी और पूरी तरह से ठहर गयी थी. हर रास्ते पर ऐसे स्वागत से बड़ी बात हो ही नहीं सकती है.
सवाल- वर्ल्ड कप से पहले मैंने आपसे एक इटंरव्यू किया था, जिस पर ऑन रिकॉर्ड आपने ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन आपने कैमरा बंद होने पर ये बोला कि ये टीम चैंपियन बनकर लौटेगी. ये भरोसा कहां से आया था?
जवाब– देखिये, कोच के तौर पर हमेशा आप युवा खिलाड़ी पर भरोसा करते हैं, क्योंकि वो कुछ कर दिखाने चाहते थे. कुछ सीनियर खिलाड़ी ऐसे थे जो भूखे थे. अच्छा प्रदर्शन करने के कि मुझे आगे बढ़ना है. उस टीम में रोहित शर्मा, रॉबिन उथ्प्पा, गौतम गंभीर, इरफान पठान जैसे खिलाड़ियों का मिश्रण था, जिनमें से कुछ खुद को साबित करना चाहते थे, तो कुछ वापसी करना चाहते थे. ये एक बहुत बड़ा प्लेटफार्म था वापसी करने के लिए उन खिलाड़ियों के लिए, जो नियमित तौर पर भारतीय टीम में आना चाहते थे. मैंने आपको जीत वाली बात इसलिए कही क्योंकि मुझे लगा कि ये टीम जीतेगी. लेकिन ऐसा मैं इंटरव्यू में नहीं कहना चाहता था. क्योंकि लोग हंसते कि इस टीम ने कौई कैंप नहीं किया था, कोई अभ्यास मैच नहीं खेला था और सिर्फ 1 टी 20 खेलने के अनुभव और के बाद चैंपिनयन कैसे बन सकती है.
सवाल- आपको कोच के तौर पर वो तारीफ कभी नहीं मिली जिसके आप शायद हकदार थे. इसका मलाल है?.
जवाब– ऐसा महसूस तो होता है, लेकिन भारतीय टीम में हमेशा अच्छा कोच उसी को माना जाता है, जिसने 50 टेस्ट खेलें हों. लेकिन (ये मान्यता सही नहीं है) कोचिंग एक अलग बात होती है. मैन मेनेजमेंट का काम होता है और आपको हर किसी से बेहतर खेल निकालना ही कोचिंग है. मेरा पास कोई अहम नहीं है और खिलाड़ी को मैं अपना दोस्त मानता हूं. टी20 वर्ल्ड कप जिताने में योगदान का भले मुझे क्रेडिट नहीं मिलता हो, लेकिन ऊपर वाले का मैं बेहद शुक्र-गुज़ार हूं क्योंकि मैं इकलौता ऐसा भारतीय कोच हूं, जिसे एक नहीं बल्कि दो-दो विदेशी टीम की कोचिंग करने का सौभाग्य मिला है. पहले मैंने अफगानिस्तान को टेस्ट स्टेट्स दिलाने में योगदान दिया और ज़िम्बाब्वे को बेहतर रास्ते पर लाने की कोशिश कर रहा हूं. कुछ तो मैं अच्छा ज़रुर कर रहा होऊंगा कि लोग मुझे बुलाते हैं. हां, लेकिन कभी कभी ऐसा लगता है कि अपने देश में वो मान्यता नहीं मिलती है, लेकिन आपको ये स्वीकार करना पड़ता.
सवाल- आप ही की तरह ओपनर गौतम गंभीर को भी सबसे ज़्यादा रन बनाने के बावजूद उतनी वाहावाही नहीं मिली.
जवाब– वो बहुत भूखे थे और जीतना चाहते थे. 300 से ऊपर रन किये थे और जिस तरीक से बैंटिग की थी उन्होंने कि लगभग हर मैच में अच्छी शुरुआत दी..वो बहुत अच्छे इंसान है और कई बार लोग उनको गलत समझते हैं. वो बहुत ज़्यादा मीडिया में लोकप्रिय नहीं थे जैसा कि आज के कई युवा खिलाड़ी रहते हैं. गंभीर को भी वो क्रेडिट नहीं मिला, क्योंकि वो भी लो प्रोफाइल रखतें है. लेकिन वो अपना काम शानदार तरीके से करते हैं.
सवाल- यही बात तो टूर्नामेंट में भारत के लिए सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले आर पी सिंह के बारे में भी कही जा सकती है?
जवाब– वो हर मैच में ब्रेक थू दिलाता था. उसके पास एक बेजोड़ कला थी इन स्विंग और आउट स्विंग कराने की, तगड़े यार्कर और बाउंसर डालने की. हर निर्णायक लम्हें में वो विकेट लेते थे. लेकिन उनका भी उतना जिक्र नहीं होता है, जितना होना चाहिए.लेकिन ये सब खेल का हिस्सा है. किसी को जल्दी शोहरत मिलती है तो किसी को देर से.
सवाल- युसूफ पठान से फाइनल में ओपनिंग कराने का फैसला किसका था?
जवाब– आपको सच बताऊं.. यूसूफ पठान सुबह में जिम कर हे थे, मैंने उसे बोला ऐसा मत करो. क्योंकि आप खेलने वाले हो.. मुझे रात में ही पता चल गया था कि वीरेंद्र सहवाग फाइनल नहीं खले पायेंगे. दो वजह थी.. मैनें माही से बात की. कोई मैच नहीं खेला था. वो बढ़िया फील्डर हैं. ऑफ स्पिन करते थे. अगर वो पहली गेंद पर भी आउट होता तो पैसे वसूल देता. पहले वो नर्वस था. मैंने उसे कहा कि अगर आप पहली गेंद पर पर आउट भी हुए तो कोई परवाह नहीं. उसका पहला स्कोरिगं शॉट छक्का था. वो हमेशा कहता है कि आपकी वजह से खेले. लेकिन मैं उसे कहता हूं कि वो सहवाग की चोट के चलते खेला.
सवाल- क्या वो गेंदबाज़ी आक्रमण टी20 में भारत का सबसे बेहतरीन अटैक था. जैसा कि आज हम मौजूदा टेस्ट आक्रमण के बारे में कहते हैं?
जवाब– टी20 फॉर्मेट में निश्चित तौर पर सबसे बेहतरीन आक्रमण था. क्योंकि वो स्विंग करा सकते थे. हमारे तेज गेंदबाज़ 140 किलोमीटर प्रति घंटे वाली रफ्तार वाले नहीं थे लेकिन उनके पास योग्यता ज़बरदस्त थी.
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सवाल- अगर आपको उस जीत की सिर्फ एक बात आपको याद करनी होगी तो वो क्या होगी ?
जवाब- ये तो बहुत मुश्किल है, ऐसे कई लम्हों में से सिर्फ एक चयन को चुनना. लेकिन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बॉल आउट करके मैच जीतना सबसे अहम था. क्योंकि किसी ने सोचा नहीं था कि हम वो मुकाबला भी जीत सकते हैं.
सवाल- अगले महीने फिर से टी20 वर्ल्ड कप है. आपको लगता है कि 14 साल बाद दूसरी जीत वर्ल्ड कप में मुमिकन है?
जवाब– हमारे पास वो टीम तो है और अब माही को मेंटोर बनाया है, तो मुझे लगता है कि ये मुमकिन है!
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