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(अभिजीत मजूमदार)
पिछले रविवार को दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम राजनीतिक प्रचार का टाइम्स स्क्वायर बन गया. टी-20 वर्ल्ड कप (ICC T20 World Cup) में पाकिस्तान के खिलाफ भारत के पहले मैच में के दौरान आईसीसी का शानदार प्रचार सामने आया. इसे एक तरह का प्रपोगेंडा कहा जा सकता है, जो लाखों लोगों के दिल में धधक रहा था. लेकिन ये समान रूप से आश्वस्त और भ्रमित करने वाला था.
ब्लैक लाइव्स मैटर (बीएलएम) आंदोलन ने भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों में नाराज़गी पैदा कर दी है. भारतीय क्रिकेट टीम ने अप्रत्याशित रूप से कई हजार मील दूर अश्वेतों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव के समर्थन में घुटने टेक दिए. जबकि अपने ही कश्मीर और पड़ोसी बांग्लादेश में हिंदुओं और सिखों को काटा जा रहा है, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की आबादी को खत्म किया जा रहा है. लिहाज़ा इससे कई सवाल खड़े होते हैं.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने इस विचित्र राजनीतिक रस्म की अनुमति क्यों दी? टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के सुझाव पर तुरंत सहमति क्यों दी?
सवाल उठता है कि भारत, जो क्रिकेट के राजस्व में भारी योगदान देता है, इतनी आसानी से आईसीसी के सामने कैसे झुक गया? क्या भारतीय क्रिकेट प्रबंधन को पता नहीं है कि बीएलएम को ओपन सोसाइटी फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन जैसी ताकतों द्वारा फंड दिया जाता है? ओपन सोसाइटी फाउंडेशन को हंगरी-अमेरिकी इंवेस्टर जॉर्ज सोरोस द्वारा फंडिंग की जाती है. ये वहीं शख्स हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी जैसी सरकारों को गिराने के लिए खुले तौर पर एक अरब डॉलर का वादा किया है और जो विश्व स्तर पर राष्ट्र राज्य की अवधारणा के खिलाफ युद्ध छेड़ते हैं. फोर्ड फाउंडेशन को भारत द्वारा सरकार विरोधी और लोकतंत्र विरोधी गतिविधियों के फंडिंग के लिए बैन किया गया था.
क्या भारतीय क्रिकेट प्रबंधन और खिलाड़ी इस बात से अनजान हैं कि बीएलएम समर्थक लंदन में मोहनदास करमचंद गांधी को नस्लवादी बताते हुए उनकी प्रतिमा को तोड़ना चाहते थे. यहां तक कि अगर हम स्वीकार करते हैं कि बांग्लादेशी हिंदुओं के खिलाफ विरोध करने की तुलना में पश्चिम में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई टीम इंडिया के लिए अधिक महत्वपूर्ण है, तो बीएलएम का समर्थन एक विशिष्ट, राजनीतिक रूप से फंडिंग ग्रुप की सदस्यता लेने के बराबर है, न कि बड़े कारण को स्वीकार करना. क्या एक राष्ट्रीय टीम को एक राजनीतिक समूह का समर्थन करना चाहिए, चाहे वो कितना ही अच्छा क्यों न हो?
बीएलएम के लिए यह समर्थन, भारत के लिए अप्रासंगिक आंदोलन, गांधी और भारतीय मुसलमानों से तुर्की में इस्लामी खिलाफत स्थापित करने के लिए 1920 के आंदोलन को अजीब तरह से अपनाने से कितना अलग है, और बाद में चतुराई से इसे स्थानीय और धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए इसे ‘खिलाफत आंदोलन’ नाम दिया गया?
पाकिस्तान के खिलाड़ी मोहम्मद रिजवान ने खेल के बीच में ही नमाज क्यों पढ़ी? शाम की प्रार्थना का समय या मघरेब दुबई में शाम 5.47 बजे के आसपास शुरू होता है. मैच शाम छह बजे शुरू हुआ. रिजवान मैच से पहले या पारी के बीच में नमाज़ पढ़ सकते थे.
पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज वकार यूनिस ने हिंदुओं के सामने नमाज पढ़ने के लिए रिजवान की तारीफ करते हुए खुलेआम सांप्रदायिक टिप्पणी की. वर्तमान पीएम इमरान खान, इंजमाम-उल-हक, सकलैन मुस्ताक, मोहम्मद यूसुफ, शोएब अख्तर, शाहिद अफरीदी, सोहेल तनवीर और दूसरे पाकिस्तानी क्रिकेटरों की पीढ़ियों ने अन्य क्रिकेटरों को धर्मांतरित करने, या पवित्र युद्ध या ग़ज़वा को आगे बढ़ाने की कोशिश करने वाले वीडियो सामने आए हैं. क्या बीसीसीआई ने खिलाड़ियों को घुटने टेकने के लिए कहा है, या इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस क्रिकेट जिहाद के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के लिए कभी आगे बढ़े हैं?
Almost every ex Pak cricketer was/is involved in conversion of non-Muslim players to Islam. Check media section of @pakistan_untold to know why every team should think twice before visiting Pak. Inzamam, Saqlain, Mushtaq, Imran, Md Yusuf, Saeed Anwar- ALL worked for Jihad. Watch.
— Pakistan Untold (@pakistan_untold) September 21, 2021
भारतीय क्रिकेट कप्तान विराट कोहली और उनकी पत्नी अभिनेता अनुष्का शर्मा दिवाली पर पटाखों के खिलाफ चुनिंदा प्रचार क्यों करते हैं, लेकिन बकरीद पर सामूहिक वध के खिलाफ नहीं?
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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