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नई दिल्ली. वेस्टइंडीज (West Indies के क्रिकेटर अपने खेल की बदौलत फैंस के दिलों पर राज करते हैं, लेकिन टी20 वर्ल्ड कप (T20 World Cup 2021) में उनका जादू नहीं चला. यकीन करना मुश्किल है कि जिस टीम में क्रिस गेल (Chris Gayle), कायरन पोलार्ड, ड्वेन ब्रावो, आंद्रे रसेल, जेसन होल्डर जैसे ऑलराउंडर हों, वह चारों खाने चित हो गई. दो बार की चैंपियन वेस्टइंडीज इस टी20 वर्ल्ड कप (T20 WC) में अपने 4 में से 3 मैच हारकर सेमीफाइनल के रेस से तब बाहर हो गई, जब हर टीम को कम से कम एक-एक मैच खेलने बाकी हैं. संयोग देखिए कि जब 2012 में वेस्टइंडीज टी20 वर्ल्ड कप (T20 World Cup) का चैंपियन बना तो यही सारे ऑलराउंडर गंगनम स्टाइल में डांस करते दिखे थे. ये ऑलराउंडर आज भी वेस्टइंडीज की टीम का हिस्सा हैं, लीडर हैं, स्टार हैं, लेकिन शायद अब टीममैन नहीं हैं…
टी20 वर्ल्ड कप में जब भी भारतीय टीम की किसी कमी की बात होती है, तो ऑलराउंडर का जिक्र होता है. कहा जाता है कि भारतीय टीम में बेहतरीन ऑलराउंडर नहीं है, इसलिए टीम का संतुलन बिगड़ जाता है. इसके उलट वेस्टइंडीज को देखिए. इस टीम में एक-दो नहीं पांच-पांच ऐसे ऑलराउंडर हैं, जो दुनिया की किसी भी टीम में जगह बनाने की काबिलियत रखते हैं. फिर भी टीम बांग्लादेश के सिवाय किसी को नहीं हरा पाती है.
जिस टीम में ड्वेन ब्रावो (Dwayne Bravo) 10वें नंबर पर बैटिंग करने आते हों, उसकी बैटिंग बार-बार बिखरती है. आखिर क्यों? जब इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करेंगे कि तो आप पाएंगे कि वेस्टइंडीज का हर खिलाड़ी मैचविनर है, स्टार है, लेकिन शायद यह एक सुसंगठित टीम नहीं है. क्रिकेट में जब से लीग कल्चर बढ़ा है, तो उसका सबसे ज्यादा लाभ कैरेबियाई क्रिकेटरों ने लिया है. ये खिलाड़ी हर बड़ी टी20 लीग में हिस्सा लेते हैं और अपनी फ्रेंचाइजी के चहेते बन जाते हैं.
इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल को ही ले लीजिए. ड्वेन ब्रावो जब से चेन्नई सुपरकिंग्स का हिस्सा बने, तब से इसके साथ बने हुए हैं. कायरन पोलार्ड (Kieron Pollard) और आंद्र रसेल (Andre Russell) को मुंबई इंडियंस और कोलकाता नाइटराइडर्स तकरीबन हर बार रीटेन करती हैं. सुनील नरेन भी केकेआर के नियमित सदस्य हैं. यानी ये खिलाड़ी अपनी-अपनी फ्रेंचाइजी के लिए जरूरी हो गए हैं. जाहिर है वे मैचविनर हैं. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि लीग कल्चर के कारण ही ये क्रिकेटर वेस्टइंडीज के लिए कभी साथ नहीं खेलते. टी20 वर्ल्ड कप में वेस्टइंडीज को इसी दूसरे पहलू के कारण नुकसान झेलना पड़ा है.
वेस्टइंडीज और भारत जैसे देशों में स्टार कल्चर भी हावी है. यहां एक बार जब कोई खिलाड़ी बड़ी हैसियत हासिल कर लेता है, तब उस पर चयनकर्ता, कोच या कप्तान हाथ डालने से डरते हैं. न्यूजीलैंड, इंग्लैंड जैसी टीमें स्टार कल्चर से मुक्त रही हैं. आप टी20 लीग से लेकर विज्ञापन की दुनिया देख लीजिए, वेस्टइंडीज के मुकाबले न्यूजीलैंड या इंग्लैंड के क्रिकेटर आपको कम नजर आएंगे. जो इंग्लैंड 2019 के विश्व कप का विजेता है, जो न्यूजीलैंड पिछले विश्व कप का उपविजेता और टेस्ट का विश्व चैंपियन हैं, वहां आपको मुश्किल से एक-दो स्टार ही मिलेंगे. खासकर न्यूजीलैंड टीमगेम का आदर्श उदाहरण है. यही कारण है कि इन टीमों से आसमानी उम्मीद कभी नहीं की जाती लेकिन इनका प्रदर्शन हर बार सराहनीय रहता है. दूसरी ओर, वेस्टइंडीज जैसी टीमें आसमानी उम्मीदें जगाकर कभी भी धड़ाम हो जाती हैं.
वेस्टइंडीज का यूं बेआबरू होकर टी20 वर्ल्ड कप से बाहर होने का सबक साफ है. कामयाब टीम के लिए सुपरस्टार नहीं, बेहतरीन खिलाड़ी चाहिए होते हैं. खुद को ‘यूनिवर्स बॉस’ मानने वाले खिलाड़ी टी20 लीग की कामयाबी के लिए भले जरूरी हों, लेकिन नेशनल टीम में चुने जाते वक्त उनकी लोकप्रियता का ख्याल नहीं किया जाना चाहिए. नेशनल टीम चुने जाते वक्त सिर्फ एक बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि अमुक खिलाड़ी की भूमिका क्या होगी और क्या वह उसमें फिट है. स्टारडम टीम का ब्रैंडवैल्यू तो बढ़ा सकती है, लेकिन ट्रॉफी जीतने के लिए परफेक्ट टीम ही चाहिए, जिसे टीममैन वैल्यू वाले खिलाड़ी बनाते हैं.
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